Home offbeat शराब की बोतल में बिकने वाला पाकिस्तानी शरबत ‘रूह-अफजा’ कैसे बना भारतीय लोगों की पहली पसंद!

शराब की बोतल में बिकने वाला पाकिस्तानी शरबत ‘रूह-अफजा’ कैसे बना भारतीय लोगों की पहली पसंद!

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शराब की बोतल में बिकने वाला पाकिस्तानी शरबत ‘रूह-अफजा’ कैसे बना भारतीय लोगों की पहली पसंद!

हमारे बचपन का प्यार रूह-अफजा कई दशकों से हमारे साथ चला आ रहा है.

कुछ भारतीय ब्रांड्स दशकों से भारतीयों के दिलों पर राज़ कर रहे हैं. इनमें से एक हम सबका फ़ेवरेट रूह अफ़ज़ा (Rooh Afza) भी है. सदियों से हमारे सुख-दुख का गवाह रहा रूह अफ़ज़ा महज़ एक शरबत नहीं रह गया है, बल्कि ये इतिहास बन चुका है. रूह अफ़ज़ा वो हिंदुस्तानी ब्रांड है जिसने बंटवारे का मंज़र भी देखा है और आज़ादी की पहली सुबह का जश्न भी मनाया है.

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बचपन से लेकर अब तक रूह अफ़ज़ा हमारे दिलों पर राज करता आया है और आगे भी करता रहेगा. मेहमानों का स्वागत हो या फिर त्योहार की ख़ुशियां, रूह-अफ़ज़ा शरबत के बिना अधूरी सी लगती हैं. है न? अब आते हैं असली मुद्दे पर. एक झलक रूह अफ़ज़ा के इतिहास पर डालते हैं और जानते हैं कि कैसे पाकिस्तानी शरबत भारतीयों की पहली पसंद बन गया.

एक नज़र रूह अफ़ज़ा के इतिहास पर
1907 के आस-पास हकीम अब्दुल मजीद नामक यूनानी चिकित्सक ने रूह अफ़ज़ा का आविष्कार किया. अब्दुल मजीद ने पुरानी दिल्ली की गलियों में हमदर्द नाम की एक छोटी सी दुकान खोली. हमदर्द का मतलब था हर दर्द में हमारा साथ बनने वाला. रूह अफ़ज़ा का आविष्कार उन्होंने एक पेय पर्दाथ के रूप में नहीं, बल्कि दवा के रूप में किया था.रूह अफ़ज़ा इतिहास

रूह अफ़ज़ा इतिहास
रूह अफ़ज़ा की ब्रांडिग अच्छी थी. इसलिये लोग उसकी ओर आकर्षित हुए और जब उन्होंने इसका सेवन करना शुरू किया, तो सबका फ़ेवरेट बन गया. कमाल की बात ये है कि पहले रूह अफ़ज़ा को शराब की बोतल में पैक करके बेचा जाता था. इसके बाद मिर्जा नूर अहमद नामक कलाकार ने इसका लेबल डिज़ाइन किया. शरबत का लेबल बॉम्बे के बोल्टन प्रेस में डिज़ाइन किया गया था. सब कुछ बढ़िया चल रहा था. 40 साल तक रूह अफ़ज़ा ने सफ़लता की ऊंचाईयों को छू लिया था. सिर्फ़ हिंदुस्तान ही नहीं, रूह अफ़ज़ा ने अफ़गानिस्तान में लोगों का दिल छू लिया था.

पर फिर देश के विभाजन के दौर से गुज़रा और रूह अफ़ज़ा पर इसका बुरा असर पड़ा. 1922 में अब्दुल मजीद का निधन हो गया और उसके बाद उनके 14 वर्षीय बेटे ने सारा कार्यभार संभाला. बंटवारे ने न सिर्फ़ हमदर्द पर असर डाला, बल्कि पूरा परिवार भी बिखेर दिया. बंटवारे के मंज़र में अब्दुल और उनके भाई सैद अलग-अलग हो गये. उन्होंने पाकिस्तान जाकर नये सिरे से हमदर्द की शुरुआत की.

Hamdard
इसके बाद 1953 में Waqf नामक राष्ट्रीय कल्याण संगठन बनाया गया. पाकिस्तान, भारत और बांग्लादेश में रूह अफ़ज़ा को हमदर्द Laboratories के नाम से बेचा जा रहा है. रूह अफ़ज़ा वो हिंदुस्तानी ब्रांड है जिसने कई युद्धों ख़ून की नदियां बहते हुए देखी. तीन देशों का जन्म देखा और साथ ही कई चुनौतियां भी. सबसे अच्छी बात है कि रूह अफ़ज़ा ने आज तक लोगों के दिलों में वही पुराना रुतबा बनाये रखने में कामयाब है.

(साभार)

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